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कुपोषण से निपटने को जिलाधिकारी की जनप्रतिनिधि, अधिकारी, एनजीओ और समाजसेवियों को अपील जारी

गौरव जैन
 
 
रामपुर। कुपोषण के कारण बच्चे को शारीरिक व मानसिक दुष्परिणामों का सामना लंबे समय तक करना पड़ता है या ऐसा भी हो सकता है कि अति कुपोषण के कारण मंद गति से होने वाली शारीरिक वृद्धि, तार्किक क्षमता, मानसिक विकास आदि की वजह से हमेशा के लिए अल्प शारीरिक विकास के कारण उत्पन्न विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त भी हो सकते हैं।
भारत सरकार और प्रदेश सरकार द्वारा सितंबर माह को राष्ट्रीय पोषण माह के रूप में मनाया जा रहा है जिसमें आंगनबाड़ी कार्यकत्री, आशा और एएनएम  घर-घर जाकर लोगों को कुपोषण से बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव और सुपोषण के लिए अपनी जीवनशैली में खानपान सहित विभिन्न प्रकार की सावधानी के बारे में जागरूक कर रही हैं।
शासन द्वारा जारी दिशानिर्देशों के साथ-साथ जिला प्रशासन द्वारा भी जनपद में कुपोषित बच्चों की बेहतर देखभाल और उनके बेहतर शारीरिक विकास के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं।
आईसीडीएस विभाग के डाटा के अनुसार जनपद में 6400 अतिकुपोषित एवं 25000 कुपोषित बच्चे हैं, जिन्हें कुपोषण की श्रेणी से बाहर निकालना बेहद जरूरी है। अति कुपोषण, कुपोषण एवं सुपोषण का निर्धारण बच्चे का उम्र के साथ मानक के अनुसार वजन के आधार पर किया जाता है।
जिलाधिकारी आन्जनेय कुमार सिंह के निर्देशानुसार जनपद में चिन्हित अति कुपोषित एवं कुपोषित बच्चों में से ऐसे बच्चों के परिवारों का चिन्हीकरण किया जा रहा है जो आर्थिक रूप से इतना सक्षम नहीं है कि वह अपने बच्चे को कुपोषण की श्रेणी से बाहर निकालने के लिए जरूरी पोषक आहार प्रदान कर सकें।
ऐसे परिवारों के कुपोषित बच्चों को गोद लेने तथा उन्हें कुपोषण के श्रेणी से बाहर निकालने के लिए जिलाधिकारी द्वारा  जनप्रतिनिधि, अधिकारी, कर्मचारी, उद्यमी, स्वयंसेवी संगठन एवं समाजसेवियों को अपील पत्र भेजा जा रहा है जिसमें उन्होंने कुपोषण के कारण बच्चों को भावी भविष्य में होने वाली चुनौतियों से बचाने के लिए उन्हें गोद लेकर पौष्टिक आहार जैसे हरी सब्जी, दूध, अंडा, फल, दलिया आदि की उपलब्धता सुनिश्चित कराते हुए बच्चे के सुपोषित होने तक पोषण प्रबंधन की जिम्मेदारी लेने के लिए अपील की है। कुपोषित बच्चों के म पोषण प्रबंधन की जिम्मेदारी को पूर्णत: स्वैच्छिक रखा गया है इसलिए अपील पत्र के साथ एक सहमति पत्र भी प्रेषित किया जा रहा है जिसमें इच्छुक जनप्रतिनिधि, अधिकारी, कर्मचारी, स्वैच्छिक संगठन या अन्य समाजसेवी अपनी लिखित सहमति से प्रशासन को अवगत कराएं।
 मुख्य विकास अधिकारी गजल भारद्वाज द्वारा भी नियमित रूप से कुपोषित बच्चों की स्थिति एवं उनके सर्वे की मॉनिटरिंग की जा रही है तथा आईसीडीएस, स्वास्थ्य, पूर्ति विभाग, पंचायती राज, ग्राम्य विकास सहित अन्य विभागों के अधिकारियों को कुपोषण से निपटने के लिए जरूरी निर्देश भी जारी किए जा रहे हैं।
जिला कार्यक्रम अधिकारी राजेश कुमार ने बताया कि आईसीडीएस विभाग द्वारा लगातार सर्वे किया जा रहा है तथा ऐसे परिवार जिनमें कुपोषित बच्चे पाए जा रहे हैं परंतु उन परिवारों की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं है तो ऐसे परिवारों को चिन्हित करके निर्धारित पात्रता के अनुसार प्राथमिकता से विभिन्न सरकारी योजनाओं जैसे राशन कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड, आवासीय योजना आदि का लाभ भी दिया जा रहा है ताकि वे अपने बच्चों एवं परिजनों को पोषक तत्वों की उपलब्धता सुनिश्चित करा सकें तथा स्वस्थ और सम्मान पूर्वक जीवन व्यतीत कर सकें।
ऐसे परिवार जो आर्थिक रूप से संपन्न है परंतु उन परिवारों में भी कुपोषित बच्चे पाए जा रहे हैं, जिसका प्रमुख कारण यह है कि वे  अपने बच्चों के पोषण के प्रति  गंभीर नहीं है जबकि ऐसे परिवारों को अपने बच्चे के सुपोषण पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
उन्होंने बताया कि ऐसे परिवारों को भी चिन्हित करके उनकी काउंसलिंग कराई जा रही है ताकि वे अपने बच्चे के खानपान में सुधार करके उसे सुपोषित बना सकें।

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